११ जुलाइ को मेरा प्यारा सा डॉगी
एरिक खतम हो गया तब से अब तक मे यकीन नहीं कर पा रही हु की ऐसा असल मे हो
गया है। करीब डेढ़ साल पहले अपने करियर के लिये मे जर्मनी आ गयी। और वो
मेरे पापा और दीदी के साथ घर पर ही छूट गया। ९ जुलाइ को अचानक उसे बुखार आ
गया और फिर उसने जीने के लिये मौत से काफी बहादुरी से लड़ाई की, पर होनी ही
जीत गयी।
२१ दिन का था वो जब हम सभी बहने
उसे अपने घर लाये थे। मेरी हथेलियो से भी छोटा था वो, और फिर देखते ही
देखते हमारे मोहल्ले की जान हो गया वो!
वही
एक था जो मंदिर जाता था, मिठाई बहुत पसंद थी उसे और पापा के ब्रैन हेमरेज
के बाद वही था जिसके लिये पापा खुद चलकर मंदिर जाना चाहते थे। लोग कहते है
कुत्ता नहीं पालना चाहिये क्योंकि वो मर जाता है तो बड़ा दुख होता है। दुख
तो हम लोगो को भी हुआ पर मैं सोचती हु। जीवन मृत्यु एक बात है पर कुत्ते
आदमी से भी ज्यादा वफादार होते है। इस कारण एरिक हमारे यादो मे सुरक्षित
रहेगा और हमारे घर मे एक नया डॉग आयेगा।
मैं अभी भी सोचती हु की मे जब घर जाउगी तो खुशी से दौड़ता हुआ पूरे मोहल्ले
का चक्कर कौन लगायेगा? खैर नयी यादें बन जाएंगी। देखते है भविष्य
के गर्भ मे क्या है?
